Akhil Srivastava
अखिल श्रीवास्तव स. आई. टी लोनावला के छात्र हैं. आज के नौजवान पीढ़ी के उभरते कवि हैं. उन्हे ऐसे ही लिखित कला के कार्यक्रम में में दिलचस्पी है. इसके आलावा वह गीतकार, संगीतकार व गायक भी हैं. एक बंद में वह कीबोर्ड वादक भी हैं. सातवीं कक्षा से ही उन्हे कविताओं का शौक थ. साहित्यिक अंताक्षरी में कई बार भाग लेकर उन्होने पुरस्कार पाया हैं. इन्ही सब के वजह से आज वह बड़े उत्साह से लिखते हैं, चाहे ख़ुशी हो या गम, आशा हो या आकांशा. आज तक वह १९० कवितायेँ लिख चुके हैं तथा ज़िन्दगी और इसमे रहने वाले लोगों पर, प्यार और विश्वास पर ज्यादा लिखते हैं. आज आईये पढ़ें अखिल द्वारा लिखित ऐसे ही एक कविता. इसके लिए इन्हे पुरस्कार भी मिला है.
अंधे देश का राजा
कोशिशें बारम्बार की पर रह गए हम सिर्फ एक हार
कहीं सूरज की किरण जलेगी, मानवता का होगा उधार
जीवन में पाया खोया भी है अनेक
कहीं लहू की नदी बही
अंधे देश का राजा हुँ एक।
विदावनों की वादी थी जब दुनिया ने कर दिया था हमारा तिरस्कार
तब उबाल रहे थेय हमारे वासी, की कौन लगाएगा हमारी नैया पार.
दीखता सूरज भी मुँह फेर लेता था, उस अँधेरे में थी हमारी लेख
कहीं गलतियां करनी सीखी अंधे देश का राजा हुँ एक।
नहीं मैं किसी आम देश का राजा ऐसे मुल्क की पहचान हुँ
जहां रंग रूप का भेद भाव है, अदृश्य जाती का भगवान हुँ
ऐसे देश की पहचान हुँ जहां अपना ही परया हो गया
देश के इस शर्मनाक कोशिश के कारण जाती बटवारा हो गया।
मैं हुँ एक बदनसीब देश प्रेमी और भारत है मेरा देश
जिसने अपनी दुनिया खुद बनायीं है, जो कर देता है
अपने ही लोगों का तिरस्कार और रहता नहीं कोई शेष
क्योंकि वह है एक अँधा देश. !
ख़ास धन्यवाद पिंकी शर्मा को जिसकी बदौलत आज अखिल का काम आज दुनिया पढ़ सक रही है
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